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हिन्दी कविता में मुक्तिबोध / अनिल जनविजय

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भोजन के वक़्त

गस्सा चबाते हुए

दाँतों के बीच

जैसे महसूस हो किरकिरी

वैसे हैं मुक्तिबोध

हिन्दी कविता में


(1980 में रचित)