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पिता जी ( शब्दांजलि-१) / नवनीत शर्मा
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घरों में बलग़मी छाती का होना
दीवारों का चौकस
छत का मजबूत होना है।
वही झेलती है
तीरों की धूप
कुरलाणियों की बरखा ।
दुख बस यही कि खिड़कियाँ
बहुत जल्द आसमान
हो जाना चाहती हैं।