आप अपने गमों का हिसाब रखिये
जख़्मे-दिल पे ताज़ा गुलाब रखिये
उनकी हर बात है सवाल की तरह
साथ ख़ामोशी के तुम जवाब रखिये
उसने गर ये पूछा के दुनिया में क्या किया
कुछ तो अपने हिस्से में सवाब रखिये
दूसरों के गम में रोना अच्छी बात है
कुछ ख़्याल अपना भी ज़नाब रखिये
‘इरशाद’ दर्दो-ग़म बेहिसाब ही सही
पीने-पिलाने का कुछ हिसाब रखिये