भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विरह-गान / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
(कवि उदय प्रकाश के लिए)
दुख भरी तेरी कथा
तेरे जीवन की व्यथा
सुनने को तैयार हूँ
मैं भी बेकरार हूँ
बरसों से तुझ से मिला नहीं
सूखा ठूँठ खड़ा हूँ मैं
एक पत्ता भी खिला नहीं
तू मेरा जीवन-जल था
रीढ़ मेरी, मेरा संबल था
अब तुझ से दूर पड़ा हूँ मैं
(2004 में रचित)