भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गजराज / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:43, 21 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देख-देख
भूधराकार
उड़ते घन-गज को

बंधे-बंधे गजराज
आज फिर दिन भी झूमे
मुक्ति कामना की तरंग में

फिर जाने क्या सोच
उठा कर सूंड
शिला से अचल हो गये

झूमे ताल तमाल
दसों दिग्पाल
काल के महाखंभ में
बंधे-बंधे भी

यही झूमना
काल हो गया
इस अकाल में
छन्द के लिये