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माया श्रृंखला-९/रमा द्विवेदी
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१- आधुनिक तारिकाओं ने,
रंभाओं को दे दी मात है।
वे रिझाती थीं कला से,
ये दिखातीं गात हैं॥
२- देशी मायाओं का निर्यात,
खुलेआम हो रहा विदेश को।
नेता बस यह कह रहे,
कुर्सी बचाएं या देश को॥
३- माया के खातिर पुत्र ने,
बंदी पिता को कर लिया।
आंखें निकाली भाई की,
कैद उसको भी किया॥
४- मायाओं के सौन्दर्य ने,
आचार्यों को भरमाया है।
शिष्या बनी अब प्रेमिका,
वासना का पाठ पढ़ाया है॥
५- ज्ञानी,तपस्वी, साधु-संत,
या कोई गृहस्थ हो।
सब ही में है माया बसी,
चाहे कोई कितना ही विरक्त हो॥