भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं बस्ती हो जाने तक / विज्ञान व्रत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:41, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विज्ञान व्रत |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <Poem> मैं बस्ती हो जान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं बस्ती हो जाने तक
पहुँचा हूँ वीराने तक

फर्ज़ अदा हो आने तक
जिंदा हूँ मर जाने तक

मैंने ख़ुद को ढूँढ़ा है
ख़ुद में गुम हो जाने तक

मेरा चर्चा तुझ-मुझ से
पहुँचा एक ज़माने तक

इस महफिल में रहना है
अपना साथ निभाने तक