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क्या दहशत क्या मंज़र है / विज्ञान व्रत
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क्या दहशत क्या मंज़र है
सारा शहर छतों पर है
अफ़साना इतना-भर है
बस इक नाम लबों पर है
आँखों में इक अंबर है
और नज़र धरती पर है
ओढ़ें और बिछा भी लें
घर इतनी तो चादर है
दर चुप है, दीवारें चुप
लगता है, वो घर पर है !