भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीड़ पच्चीसी / राजेन्‍द्र स्‍वर्णकार

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:09, 24 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= राजेन्द्रा स्वणर्णकार |संग्रह= }} [[Category:मूल राजस्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रजथानी रै राज में , गुणियां रो ओ मोल !
हंस डुसड़का भर मरै , कागा करै किलोळ !!

रजथानी रै खेत नैं , चरै बजारू सांड !
खेत धणी पच पच मरै , मौज करै सठ भांड !!

कांसो किण रो… कुण भखै ; ज़बर मची रे लूंट !
चूंग रहया रजथान री गाय ; सांडिया ऊंठ !!

महल किणी रो घुस गया कित सूं आ'य लठैत ?
घर आळां पर घौरकां धमलां सागै बैंत !!

शरण जकां नैं दी ; हुया बै छाती असवार !
हक़ मांगां अब भीख ज्यूं ? रजथानी लाचार !?

रजथानी गढ आंगणां , रै'गी कैड़ी थोथ ?
राजा परजा सूरमां थकां मांद क्यूं जोत !?

भणिया गुणिया मोकळा बेटां री है भीड़ !
सिमरथ ऐड़ो एक नीं ? मेटे मा री पीड़ !!

पूत करोड़ूं सूरमा राजा गुणी कुबेर !
रजथानी खातर किंयां ओज्यूं सून अंधेर ?!

माता नऊ करोड़ री रो रो ' करै पुकार !
निवड़या पूत कपूत का भुजां हुई मुड़दार ?!

समदर उफ़णै काळजै , सींव तोड़ियां काळ !
सुरसत रा बेटां! करो मा री अबै संभाळ !!

निज भाषा, मा, भोम रो,जका नीं करै माण !
उण कापुरुषां रो जलम दुरभागां री खाण !!

जायोड़ा जाणै नहीं जे जननी री झाळ !
उण घर रो रैवै नहीं रामैयो रिछपाळ !!

निज भाषा रो गीरबो करतां क्यां री लाज ?
मात भोम, भाषा 'र मा सिरजै सुघड़ समाज !!

मिसरी सूं मीठी जकी…राजस्थानी नांव !
व्हाला भायां, ल्यो अबै निज भाषा री छांव !!

माता नैं मत त्यागजो , त्याग दईजो प्राण !
मा आगै सब धू्ड़ है…धन जोबन अर माण !!

अरे सपूतां ! सीखल्यो माता रो सन्मान !
मा नैं पूज्यां' पूजसी थांनैं जगत जहान !!

नव निध मा रै नांव में , राखीजो विशवास !
मत बणजो माता थकां और किणी रा दास !!

माता रै चरणां धरो , बेटां ! हस हस शीश !
खूटै सगळा धन, अखी माता री आशीष !!

मा मूंढै सूं कद करै आवभगत री मांग ?
आदर तो मन सूं हुवै , बाकी ढोंग 'र स्वांग !!

करम वचन मन सूं करो माता रा जस गान !
रजथानी अपणो धरम , रजथानी ईमान !!

गूंजै कसबां तालुकां ढाण्यां शहर 'र गांव !
भाषा राजस्थान री… राजस्थानी नांव !!

वाणी राजस्थान री जिण री कोनी होड !
होठ उचारै ; काळजां मोद हरख अर कोड !!

उपजै हिवड़ै हेत ; थे बोलो तो इक बार !
राजस्थानी ऊचरयां ' बरसै इमरत धार !!

इमरत रो समदर भरयो , पीवो भर भर बूक !
रजथानी है प्रीत री औषध असल अचूक !!

पैलां मा नैं मा गिणां आपां हुय ' दाठीक !
मरुवाणी नैं मानसी ओ जग जेज इतीक !!