भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बैलगाड़ी / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 24 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कहें केदार खरी खरी / के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बैलगाड़ी राज्य की
चल नहीं सकती प्रगति से दौड़ती।

एक ही तो बैल है!
दूसरा अब भी अलग है-दूर है!!
हाँकने वाला बड़ा हैरान है-
बैलगाड़ी में लदा है अन्न-वस्त्र;
देश के हर छोर में जा,
देश के हर एक जन को
नाज, कपड़ा बाँटना है;

देर होती जा रही है!
बैलगाड़ी राज्य की
चल नहीं सकती प्रगति से दौड़ती।

रचनाकाल: १६-०९-१९४६