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इत्तेफ़ाक़ / अख़्तर-उल-ईमान

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दयार-ए-ग़ैर में कोई जहाँ न अपना हो
शदीद कर्ब<ref>दुख</ref> की घड़ियाँ गुज़ार चुकने पर
कुछ इत्तेफ़ाक़ हो ऐसा कि एक शाम कहीं
किसी एक ऐसी जगह से हो यूँ ही मेरा गुज़र
जहाँ हुजूम-ए-गुरेज़ाँ<ref>भागती हुई भीड़</ref> में तुम नज़र आ जाओ
और एक-एक को हैरत से देखता रहे


उर्दू से लिप्यंतर : लीना नियाज

शब्दार्थ
<references/>