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बदलते सन्दर्भ / रवीन्द्र भ्रमर
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सारा संदर्भ
बदल जाता है ।
इस कोने के फूलदान को
ज़रा उस कोने कीजिए,
इस आले के दर्पण को
उस आले,
या इस मेज़ का रुख़
ज़रा-सा यूँ
कि उधरवाली खिडकी का
आकाश दिखाई पडने लगे !
सारा संदर्भ
बदल जाता है
प्रत्येक दृश्य
नए-नए अर्थ देने लगता है
इस-ऐसे अनूठे
सत्य की उपलब्धि
मुझे तब हुई
जब
इधर की दीवार पर लगे
तुम्हारे चित्र को
मैंने उधर की दीवार पर लगा दिया!