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कह नहीं सकता / त्रिलोचन

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कह नहीं सकता

मुझ को उदासी क्यों पकड़ लिया करती है


अपनी राह आता हूँ जाता हूँ

कोई भी लगाव अलगाव नहीं

और सिलसिला जो चल निकला है

चलता ही जाता है

फिर भी मन मेरा मौन साध साध लेता है


कल देखी

बरसाती नदी

वह पेटी में सिकुड़ सिकुड़ गई थी

वह प्रवाह कहाँ था

जिस से भय लगता था

अब जल को घेर कर पौधे उग आए थे

कहीं कहीं घास और कहीं कहीं काई थी

जो कुछ भी पानी था ठहरा था

मैं ने जाते सूरज को देख अलविदा कहा


कहते हैं चुप रहना अच्छा है

अपनी चुप छोड़ कर हर कोई कहता है