भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरल सा समर्पण/रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
Ramadwivedi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:57, 30 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> नहीं भाया उनको मेरा मुस्करान…)
नहीं भाया उनको मेरा मुस्कराना।
दिया आंसुओं का मुझे नज़राना॥
सरल सा समर्पण नहीं भाया उनको,
बनाया है मुझको हँसी का तराना।
नहीं मांगे हमने कभी चाँद-तारे,
दिया एक दिल ना हुए यूँ बेगाना।
चाहत हमारी ना कुछ काम आई,
सीखा उन्होंने बस सितम हम पे ढ़ाना।
दिया सब लुटा बेवफ़ाई पे उनकी,
नहीं आया हमको शम्मा सा जलाना