[१]
आज मरा फिर एक आदमी!
राम राज का एक आदमी!!
बिना नाम का
बिना धाम का
बिना बाम का
बिना काम का
मुई खाल का
धँसे गाल का
फटे हाल का
बिना काल का
अंग उघारे
हाथ पसारे
बिना बिचारे
राह किनारे!
[२]
आज मरा फिर एक आदमी!
राम राज का एक आदमी!!
हवा न डोली
धरा न डोली
खगी न बोली
दुख की बोली
ठगी, ठठोली
काम किलोली
होती होली
है अनमोली
वही पुरानी
राम कहानी
पीकर पानी
कहतीं नानी
आज मरा फिर एक आदमी!
राम राज का एक आदमी!!
रचनाकाल: २३-१०-१९५५