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आग / कहें केदार खरी खरी / केदारनाथ अग्रवाल

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आग को
आदमी
बनाए है पालतू
अपने लिए

आग अब करती है
आदमी को झुके-झुके
सलाम

आग अब आग
नहीं-
गुलाम

रचनाकाल: २३-१०-१९७०