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साँप और शैतान / केदारनाथ अग्रवाल

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हम बाण मारते हैं
न साँप मरता है-
न शैतान।
हम हो गए
परेशान,
हमें मारे डालते हैं
साँप
और शैतान।

रचनाकाल: १३-०८-१९७६