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गूँज / केदारनाथ अग्रवाल
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आज सामंती पुरानी हो गई
मौत के मुँह की कहानी हो गई
जो भलाई थी बुराई हो गई
जो कमाई थी चुराई हो गई
प्यार वाली आँख कानी हो गई
मात खाई जिंदगानी हो गई
आज रानी नौकरानी हो गई
रचनाकाल: १५-११-१९७६