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आँसू और आँखें / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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दिल मचलता ही रहता है ।
सदा बेचैनी रहती है ।
लाग में आ आकर चाहत ।
न जाने क्या क्या कहती है ।।१।।

कह सके यह कोई कैसे ।
आग जी की बुझ जाती है ।
कौन सा रस पाती है जो ।
आँख आँसू बरसाती है ।।२।।