भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 9

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:39, 4 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



राक्षस बानर संग्राम

( छंद संख्या 46, 47 )

  (46)

 जातुधानवली-मत्तकुंजरघटा,
निरखि मृगराजु ज्यों गिरितें टूट्यो।

बिकट चटकन चोट , चरन गहि, पटकि महि,
निघटि गए सुभट, सतु सबको छूट्यो।।

‘दास तुलसी’ परत धरनि धरकत ,झुकत,
 हाट-सी उठति जंबुकनि लूट्यो।

 धीर रघुबीरको बीर रनबाँकुरो,
हाँकि हनुमान कुलि कटकु कूट्यो।46।

(47)(छप्पै)

क्तहूँ बिटप -भूधर उपारि परसेन बरषत।
कतहुँ बाजिसों बाजि मर्दि, गजराज करषत।।

चरनचोट चटकन चकोट अरि-उर-सिर बज्जत।
बिकट कटकु बिद्दरत बीरू बारिदु जिमि गज्जत।।

लंगूर लपेटत पटकि भट, ‘जयति राम, जय!’ उच्चरत।
तुलसीस पवननंदनु अटल जुद्ध क्रुद्ध कौतुक करत।47।