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कुछ नहीं / महेश वर्मा
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व्यस्तता छोड़कर एक पल को रुकना होगा
सुननी ही होगी मेरी बात
संक्षेप में कहने को मत कहना
कुछ नहीं है बात -- इसी से देर लगेगी
मत पूछना कि इस से तुमको क्या
कि रात के ठीक किस पहर गिरते हैं पारिजात
नीली देह वाली यह शोख नदी
अकेले में क्या कहती है चाँद से
तारों से
रात से
मत कहना ऊब कर कि तुम्हें न बताऊँ
बचपन के बक्से के बारे में
जिसमें रखे पत्थर और काँच के टुकड़े
तुम्हें सौंपने की इच्छा में बिता आया हूँ आयु
रुक कर सुननी होगी
छोटे कोमल बछड़े, समुद्र और हवा के गोपन-रिश्ते की कविता
बैठना होगा धैर्य से इस साफ़ पत्थर पर
कण भर भी इस पर धूल नहीं है
बात कुछ भी नहीं है
बड़ी मुश्किल से कहा जा सकेगा उसका थोड़ा-सा अंश
कुछ पल रुकना होगा
सुननी होगी बात