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मुझको आज मिली सच्चाई / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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मुझको आज मिली सच्चाई
सहमी-सहमी और घबराई
 
भूल गया मुझको वो ऐसे
जैसे भूले लोग भलाई
 
ताक़ पे जो ईमान रखे हैं
छान रहे वो दूध मलाई
 
मैले गमछों की पीड़ाएँ
क्या समझेगी उजली टाई
 
राहे उल्फ़त सँकरा परबत
और बिछी है उस पर काई
 
सुनकर वो मेरी सब उलझन
बोला मैं चलता हूँ भाई
 
दुख जीवन में गेंद के जितना
सुख इतना जैसे हो राई
 
हाले दिल मत पूछ ‘अकेला’
कुआँ सामने, पीछे खाई