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सिकंदर भी यहाँ बेहाल है / उषा उपाध्याय
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काल की किसने मिटाई चाल है ,
खुद सिकंदर भी यहाँ बेहाल है ।
अपने आप सभी आयुध म्यान हो गए,
मौत का कैसा अनोखा प्यार है ।
ज़हर का प्याला लबालब भेज दे,
इस जगत का यह पुराना हाल है ।
पर हुआ मेवाड़ तो होगी मीरा,
इतना सोना तो मिला, तिल-भार है ।
इस जगत के तीर उनको क्या करें,
हाथ में जिनके अलख की ढाल है ।
संकरी दीवार सब ढह जाएगी ,
प्रेम नामक जागता जगपाल है ।
फूल सुखी डाल पर भी आएँगे ,
है वज़ह इस हाथ में करताल है ।
मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा