भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोती गिरा / उषा उपाध्याय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:13, 7 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा उपाध्याय |संग्रह= }} Category: गुजराती भाषा {{KKCatKavita}}…)
आँख से मोती गिरा तो क्या हुआ, पूछो नहीं
वेदना की बाढ़ में क्या-क्या गया, पूछो नहीं ।
आटे जैसा बन हवा में इस कदर उड़ता रहा,
आफ़त के दो पत्थरों ने क्या-क्या पीसा, पूछो नहीं ।
बंद रखने मुठ्ठी को क्या कोशिशें कीं रात-दिन,
यातना के हिम में क्या-क्या गला, पूछो नहीं ।
पता नहीं था दुख और पीपल के साम्य का,
छत और छाती चीर कर क्या-क्या उगा, पूछो नहीं ।
कहाँ पता था कि यह कोई चिनगारी है,
लो, समय के हाथ से क्या-क्या जला, पूछो नहीं ।