राम-नाम-महिमा-5 
 
 (99)
बबुर-बहेरे को बनाइ बागु लाइयत, 
रूँधिबेको सोई सुरतरू कटियतु है। 
गारी देत नीच हरिचंदहू दधीचिहू को, 
आपने चना चबाइ हाथ चाटियतु है।ं 
आपु महापातकी, हँसत हरि -हरहू को, 
आपु हे अभागी, भूरिभागी  डाटियतु है। 
कलिको कलुष मन मलिन किए महत, 
मसककी पाँसुरी पयोधि पाटियतु है।।
(100)
सुनिए कराल कालकाल भूमिपाल! तुम्ह, 
जाहि घालो चाहिए, कहौ धौं राखैं ताहि को। 
हौं तौं दीन दूबरो, बिगारो -ढारो रावरो न ,
 मैहू तैंहू ताहिको, सकल जगु  जाहिको।। 
काम, कोहू  लाइ कै देखाइयत  आँखि मोहि, 
 एते मान अकसु  कीबेको  आपु  आहि  को।।
 साहेब सुजान, जिन्ह स्वानहूँ  को पच्छु कियो, 
रामबोला नामु, हौं गुलामु रामसाहिको।।