भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम भी सीख लो / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:27, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश मेहन |संग्रह=पेड़ का दुख / नरेश मेहन }} {{KKCatKavita}} <…)
मैं
फूल हूँ
सौंदर्य का प्रमिमान।
मेरा रंग-रूप
खूशबू
सब खूबसूरत हैं।
मैं
जिस स्थान पर होता हूँ
उसको भी बना देता हूँ
मनमोहक
मैं
तीखी और कंटीली
डालियों पर भी
हरदम मुस्करात रहता हूँ
आओ
तुम भी सीख लो
समाज को सुन्दर बनाना
ताकि वह
हर वक्त मुस्कारता रहे
मेरी तरह
हर संकट में