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डूबते हुए जहाज में प्रेम / नरेश अग्रवाल

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जहाज डूबने को था
हमने देह से अधिक
प्रेम को बचाना चाहा
जब सारे लोग भाग रहे थे
हम प्रेम में थे मग्ना
हमारा प्रेम सिलसिलेवार चलता रहा
जो बच सके, वे बच गये
जो नहीं बच पाये, वे नहीं बच पाये
उनमें हम दोनों भी थे
दोनों हाथ हमारे मिले हुए थे
साथ ही कन्धे से कन्धा
और मन से मन
भय कहीं नहीं था
पानी हमें झाँक रहा था
और हम एक-दूसरे को ।