भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जल / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:37, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=नए घर में प्रवेश / नरेश अग्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब सारे स्रोत सूख जाते हैं
जमीन में फिर भी जल रहता है
थोड़ी-सी आँख खोली नहीं मिट्टी की
कि पानी दिखलाई देने लगा तल से।

इन औरतों को यह पानी खींचते देख
लगता है धरती सचमुच उदार है
हर जीभ मिठास से भर देती है
और ये हाथ जिन्हें
हमेशा कमजोर समझा गया
अभी भी उतने ही मजबूत हैं
हर गृहस्थी का कण्ठ तर करते हुए ।