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समाज / नरेश अग्रवाल

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झरने वर्षों की मेहनत के बाद
पत्थरों से फूटकर आते हैं बाहर
उनमें एक लय होती है
जो नदी की शक्ल में बदलकर
आगे बढ़ती जाती है
इसी तरह से बनता है समाज
एक-एक धार जुड़ी हुई
बढ़ता है एक लय से, उन्नति के रास्तों पर।