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अब / नरेश अग्रवाल

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अब कोई जगह खाली दिखाई नहीं देती है
जैसे सब कुछ भरा हुआ है प्रेम से
हम विषाद में भी प्रेम देखते हैं
और लगता है, जिन्दगी की हर अड़चन
प्रेम बढा रही है तुम्हारे लिए
जैसे पूरे के पूरे हम
तुममें डूबे हुए
और जो छलकता है हमारा प्रेम
आकाश की पूरी ऊँचाई को
छू जाता है यह
जैसे वहाँ तुम बैठे हुए हो
हम तो हमेशा भ्रमित
क्या जाने वहाँ क्या हो रहा है
कभी लगा, कुछ दिखाई देगा
उसी पल बादल आड़ में आ गये
एक चलता-फिरता जीवन देखा था तुम्हारा
अब सब कुछ सपनों में है
और यहाँ तो कोई भाषा भी नहीं है
सब कुछ चुप रहकर बोला जाता है,
मिलोगे इस बार तो कुछ कहना
हम तुम्हें समझने की कोशिश करेंगे ।