भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिण दिन सूं / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:41, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नीरज दइया |संग्रह=साख / नीरज दइया }} [[Category:मूल राजस्…)
सनीमा मांय
किणी रै मरण माथै
होंवता देख’र रोवा-कूकी
म्हैं टीखळ उडावतो
म्हनै लखावता
बै चितराम
बेतुका-फरजी अर नाटकिया।
पण जिण दिन सूं
देख्यो है म्हैं
परतख मरण जीसा रो
टीखळ ई भूलग्यो।
जा कदैई-कठैई
दिख जावै- मौत
का किणी रै मरण रा आसार
म्हैं गळगळो हो जावूं
हरख नै धर देवै
अडाणै- ओळूं
अर भळै भुगतूं म्हैं
एक भुगत्योड़ी पीड़!
परतख पीड़!!