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दपूचो / नीरज दइया

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दपूचो टोरती बगत
म्हैं नीं सोच्यो हो
कै भांडसो थे म्हनै
इण ढाळै।

सीधी सी’क बात सामीं
थां उठायो
बांकीज्योड़ो फुट्टो।

काल रै दिन
म्हैं घड़ूलां
बळ पड़ता जाळी-झरोखा
नूंवां थरप देवूंला ध्रू-मोड़ा
पण परबारो आज
तावड़ै मांय खटवी खांवतो
करणां सीखूं हूं जापता
थांरै बगस्योड़ा-
अंधारै अर आंधी रा।