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काम / नरेश अग्रवाल
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काम कितने महत्वपूर्ण बन जाते हैं कभी-कभी
उनके सिवा कुछ भी नहीं सूझता उस वक्त
हो जाता है शरीर पसीने से लथ-पथ
और पॉंव जकड़ जाते हैं थकान से
मन में बस एक ही बात गूंजती है
कब काम खत्म हो और
लौट जायें अपने घर
लेकिन काम कभी खत्म होते नहीं
सौंप जाते हैं, दूसरे काम
अपनी जगह पर
जाते-जाते भी ।