भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाग्य / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:24, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=पगडंडी पर पाँव / नरेश अग्रव…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोटी सिंकते ही
अपने खुशनुमा चेहरा निकालकर
हॅंसने लगती है
लेकिन दो पल में ही
निर्मम हाथों से पीटकर
वापस चिपका दी जाती है -
ऐसा ही होती है
दुनिया की हर रोटी के साथ ।