Last modified on 9 मई 2011, at 10:11

घास - २ / नरेश अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:11, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=पगडंडी पर पाँव / नरेश अग्रव…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घास जन्म लेती है
मिट्टी से फूटकर
लिये इच्छाएं
चॉंद छूने की
लेकिन समय के साथ
कभी काट दी जाती है
तो कभी कुचल दी जाती है
या फेंक दी जाती है
उखाड़ कर दूर कहीं ।

कोई नहीं सोचता
इनके नन्हें से मन का दर्द
न ही कोई झॉंकता
इनके चेहरों की तरफ
यहॉं तक कि बड़े पेड़ भी
रहने नहीं देते इन्हें
अपनी छाया के आस-पास

हर बार लोगों के
मुंह से निकल
गुस्से की पी खाकर
सो जाती है बेचारी
बिना किसी शिकायत के
चुपचाप ।