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अपनी उपलब्धियाँ / नरेश अग्रवाल

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अपनी उपलब्धियों को किसी को बताना या सौंपना
कितना अच्छा लगता है
शायद उनसे मिल जाए हमें थोड़ी सी इज्ज्त या प्यार
हम इस तरह से रिश्ते बना लेते हैं लोगों से
वे जो दूर खड़े हैं हमसे बहुत सारे लोग
उनकी भी उत्सुकता जाग उठती है हमारी तरफ
वे थोड़ा सा पास आने की कोशिश करते हैं
हम भी थोड़ा आगे बढ़ें तो
दोनों के हाथ आपस में मिल जाएं
और भी बहुत सारे लोग सुनेंगे हमारे बारे में
जानेंगे खबरें पढक़र अखबारों से
इस तरह से एक छोटी सी चीज
बहुत बड़ी बन जाएगी एक दिन।
सचमुच प्यार का कितना बड़ा विस्तार है यह
सभी, कुछ न कुछ कर रहे हैं अपनी लगन से
किसे क्या हासिल होगा यह कोई नहीं जानता
एक चिराग हवा से बुझ जाता है
जबकि लैम्प जलते रहते हैं महीनों
और हर दिन समेटता हूं मैं अपना सब कुछ
एकत्रित करता जाता हूं सारे अनुभव एक जगह
ताकि फिर उन्हें सौंपा जाए लोगों को अच्छी तरह से
रिश्ते बनाने की यही तरकीब है इस दुनिया में।