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झील - २ / नरेश अग्रवाल

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दृश्यों के साथ जलवायु मिली हो तो
हो जाता है उसका प्रभाव कुछ अलग सा
ये झील, स्मारक, पहाड़, यात्री, बोट
और ढ़ेर सारे पेड़
सभी सोते और जागते हैं
रोशनी और हवा के सहारे
घटते- बढ़ते हुए क्रम में
इसलिए यहां सब कुछ नया है
और जो मैं मौजूद हूं यहां
इन सबको घेर लेता हूं
अपनी भुजाओं में
जैसे ये सारे मेरे हों
और रहना चाहते हों कुछ देर मेरे साथ ।