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आधार / नरेश अग्रवाल
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एक फूल के सहारे
दूसरे फूल बैठेंगे माला में।
जो काम शुरू हुए आरंभ में
केवल वे ही आधार नहीं हैं
बल्कि हर दिन जो कार्य हो रहे
वो भी आधार बनते हैं दूसरे दिन के लिए
ये आधार सीढिय़ों की तरह बढ़ते जाते हैं
पहुंच जाते हैं किसी दूसरे ऊंचे आधार पर
हर बिन्दु आधार है
जहां से रेखाएं बढ़ती हैं
और जो काम अधूरे छोड़ दिये गए हैं दूसरों के द्वारा,
जिनमें बहुत सारा पैसा और समय नष्ट हुआ
उनमें भी आधार हैं संभावनाओं के
फिर से उन्हें ठीक किया जा सकता है
जहां से हम काम शुरू करें
आधार वहीं से बनने लगते हैं।