भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ - २ / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:03, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=चित्रकार / नरेश अग्रवाल }} {{…)
सभी पल मेरे शांत
एक रेशम के वस्त्र की तरह
और तुम्हारा स्नेह मेरे हृदय को छूता हुआ
बाहर कितना अधिक कोलाहल
फिर भी मैं तुम्हारी गहराई में उतरता हुआ,
चांद तारे उड़ रहे हैं आसमान में
सारे पत्तों में परछाई
और डालियों जैसे कोमल हाथ तुम्हारे
रखे हुए मेरे पीछे
जैसे किसी संगमरमर की शिला पर टिके हुए।