भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्ति का सौन्दर्य / भगवान स्वरूप कटियार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 10 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवान स्वरूप कटियार |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> '''सेवान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सेवानिवृत्ति के उपरान्त की अनुभूति
 
मैं वापस कर आया हूँ
उनका दिया हुआ रौबदार हैट
वज़नदार बूट
और तमाम गुनाहों में सनी
लकदक वर्दी ।

मैं छोड़ आया हूँ
वह मेज़ और कुर्सी भी
जिस पर बैठ कर
बेबसी में अनचाहे
हमें करने पड़े थे
घटिया और घृणित समझौते

आज खुली हवा में
अपने मित्रों के बीच
साँस लेते हुए
मैं महसूस कर सकता हूँ
कि जीवन कितना सुन्दर है ।