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राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 7

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राम की कृपालुता-7


( छंद संख्या 13,14)

(13)

जातुधान , भालु , कपि, केवट, बिहंग जो-जो,
पाल्यो नाथ! सद्य सो-सो भयो काम-काजको।

आरत अनाथ दीन मलिन सरन आए,
राखे अपनाइ, सो सुभाउ महाराजको। ।

नामु तुलसी, पै भोंडो भाँग तें, कहायो दासु,
 कियो अंगीकार ऐसे बड़े दगाबाजको।

 साहेबु समर्थ दसरत्थके दयालदेव!
छूसरो न तो-सो तुहीं आपनेकी लाजको।13।
 
(14)

महाबली बालि दलि, कायर सुकंठु कपि,
 सखा किए महाराज! हो न काहू कामको।

 भ्रात-घात-पातकी निसाचर सरन आएँ,
 कियो अंगीकार नाथ एते बड़े बामको।।

राय , दसरत्थके! समर्थ तेरे नाम लिएँ,
 तुलसी-से कूरको कहत जगु रामको।

आपने निवाजेकी तौ लाज महाराज को,
 सुभाउ, समुझत मनु मुदित गुलामको।14।