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नदी में ज्वार / काजी नज़रुल इस्लाम
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नदी में ज्वार आया
पर तुम आए कहाँ
खिड़की दरवाज़ा खुला है
पर तुम दिखे कहाँ
पेड़ों की डालियों पर
मुझे देख कोयल कूके
पर आज भी तुम दिखे नही
आख़िर तुम हो कहाँ
सजी-धजी मंदिर जाऊँ
पूजा करूँ सजदा करूँ
कभी तो पसीजोगे तुम
गर दिख जाओ मुझे यहाँ
लोग मुझे देख हँसे
दीवानी लोग मुझे कहे
अश्रु के सैलाब से
भर गया ये जहाँ