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जानकी -मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 9

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।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 9)

रंगभूमि में राम-2

( छंद 57 से 64 तक)

भें निरास सब भूप बिलोकत रामहिं।
पन परिहरि सिय देब जनक बरू स्यामहिं। 57।

 कहहिं एक भलि बात ब्याहु भल होइहिं।
बर दुलहिनि लगि जनक अपनपन खोइहि।।

सुचि सुजान नृप कहहिं हमहिं अस सूझई।
तेज प्रताप रूप जहँ तहँ बल बूझहिं।।

चितइ न सकहु राम तन गाल बजावहू।
बिधि बस बलउ लजान सुमति न लजावहु।।

अवसि राम के उठत सरासन टूटिहि।
 गवनहिं राजसमाज नाक अस फूटिहिं।।

 कस न पिअहु भरि लोचन रूप सुधा रसु।
करहु कृतारथ जन्म होहु कत नर पसु।।

दुहु दिसि राजकुमार बिराजत मुनिबर।
 नील पीत पाथोज बीच जनु दिनकर। ।

 काकपच्छ रिवि परसत पानि सरोजनि।
लाल कमल जनु लालत बाल मनोजनि।64।
 
(छंद 8)

 मनसिज मनोहर मधुर मूरति कस न सादर जोवहू।
बिनु काज राज समाज महुँ तजि लाज आपु बिगोवहू।।

 सिष देइ भूपति साधु भूप अनूप छबि देखन लगे ।
रघुबंस कैरव चंद चितइ चकोर जिमि लोचन लगे।8।
 
(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 9)