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स्वयं से बात / रित्सुको कवाबाता

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बहुत व्यस्त रही मैं
अंततः निबट गए सब काम
नहा सकती हूँ मैं अब
मलते हुए आराम से अपना शरीर.
रग - रग को रगड़ने से
कितना मैल निकलता है!
किन्तु ये हैं मेरी कोशिकाएं .
हैरान हूँ कि कैसे कोशिकाएं
लेती हैं पुनर्जन्म ?
दिन प्रति दिन .
बिना आभास दिए
नयी कोशिकाएं जन्मती हैं
पुरानी मर जाती हैं .
बाईबल कहती है ,-"तुम मिटटी हो
और मिटटी में मिल जाओगे "
सचुमच करती हूँ मैं विश्वास अब !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना