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आईना / रेशमा हिंगोरानी
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साँस लेना मेरा दुशवार हो न जाए कहीं,
मौत! तुझसे भी मुझे प्यार हो न जाए कहीं!
कहाँ-कहाँ से मर्ज़ ढूंढ लाई है दुनिया,
कि चारागर, ख़ुद बीमार हो न जाए कहीं!
जुदाई ही रही ता-उम्र नसीबा अपना,
शबे-आख़िर भी यूँ बेकार हो न जाए कहीं!
शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई,
चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं!