भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़रूरत / रेशमा हिंगोरानी
Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:30, 18 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> तुझ तक पहुँचन…)
तुझ तक पहुँचने की आरज़ू,
इक दीवानगी की शक्ल ले रही है!
मेरी बेबाक़ तमन्ना भी,
इक मजबूरी सी बन रही है!
मैं दूर खड़ी,
इस तड़प को,
अपनी फ़ितरत<ref>स्वभाव</ref> में,
शामिल होते,
देखती हूँ…
ज़िंदा रहने की आदत,
रफ्ता-रफ्ता<ref>धीरे-धीरे</ref>,
इक ज़रूरत में तब्दील हो रही है!
शब्दार्थ
<references/>