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मानी-ए-हयात / रेशमा हिंगोरानी

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जिस इश्क की खातिर था गँवाया सब कुछ,
आज उस इश्क को ही हम, गँवा आए हैं!

लुटा के सब, लौट आए हैं, उसी दुनिया में,
जहाँ न ग़म है अब,
न मानी-ए-हयात<ref>जिंदगी के मायने</ref> कोई...
बस एक सूनेपन का सागर है,
सफीना<ref>कश्ती, नाव</ref> डूब रहा है जिसमें!

शब्दार्थ
<references/>