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चादर तानकर सो गया / रमेश नीलकमल

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वह रेलगाड़ी में यात्रा कर रहा था

गद्दीदार बर्थ पर अधलेटा

पढ़-देख रहा था अखबार

कि उसे देश की चिन्ता हुई

देश में फैली-बिखरी व्यवस्था की चिंता हुई

चिंता हुई

आहत-व्याहत जन-साधारण की भी

जो भुगत रहे थे

घोटालों का व्यापार

एक अराजक संसार

निर्विकार।

उसे लगा कि देश को

क्रांति की जरूरत है

और क्रांति

तबतक नहीं होगी

जबतक वह आगे नहीं आएगा

कि तभी उसने सोचा -

देख लें अखबार में छपा

दैनिक भविष्य

अपना और क्रांति का भी।

पढ़ा। मन ही मन पढ़ा उसने

अपना भविष्य

और पढ़कर कि सफलता में संशय है

चादर तानकर सो गया।