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हर चेहरे के पीछे / कुमार रवींद्र

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हर चेहरे के पीछे
एक परिचय है
और हर आँख के पीछे एक चिन्तन ।
 
वह जो बच्चा
कौतूहल से मुझे देख रहा है
मेरी परिभाषाओं से अनभिज्ञ
मेरी साफ़ पैंट को
अपनी गंदी उँगलियों से छूकर
जानना चाहता है
कि मैं कौन हूँ । अपना परिचय देती
उसकी जिज्ञासु दृष्टि का उत्तर
मेरे पास नहीं है -
उसका चिन्तन भोर का है
और मेरा उत्तर साँझ का ।

कनखियों से देखती उसकी माँ का
आकर्षण मुझे छूता है -
मैं बँधना चाहता हूँ उस दृष्टि से-
जानना चाहता हूँ
उस देह का इतिहास क्या है ।
किन्तु उस चेहरे के पीछे
केवल एक सपाट आशंका है ।
उसकी आँख ने मेरी जिज्ञासा देख ली है
और वह अजनबी हो गई है एकाएक ।
अस्वीकार की वह स्थिति
अपरिचय की दीवार हो गई है ।
 
वहीँ
एक सदियों पुराना चेहरा भी है ।
वही दृष्टि जो
तूफानों को झेलने से बनती है
मुझे तिरस्कार से घूर रही है
बेशर्मी से भी |
यह चेहरा कभी नहीं मरता
यह दृष्टि कभी नहीं बुझती ।
बुझी चिता-सी यह दृष्टि
पीढ़ी-दर-पीढ़ी ऐसी ही रही है -
इसमें प्रश्न नहीं हैं
आशंकाएँ नहीं हैं
उत्तर-ही-उत्तर हैं
समय के-उम्र के -
सभी स्थितियों के एक ही उत्तर ।
मैं इस दृष्टि से हतप्रभ हो रहा हूँ ।
सामने विंडस्क्रीन पर अँधेरा है
और उस पर चिपका चेहरा
हर यात्रा पर मुझे दिखा है इसी तरह ।