भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:00, 21 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवनीत पाण्डे |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>मैंने कहा-कुछ ब…)
मैंने कहा-कुछ बोलो!
वह बोली भी
पर उड़ा ले गई हम दोनों के बीच का संवाद
हवा!
हवा जो आई थी बाहर से
उसके होंठ हिल रहे हैं
गोया
वह अब भी कुछ बोल रही है
कुछ कह रही है
पर कहां रुकती है, सुनने देती है
हवा!
यह बाहर की हवा